आज रिलीज हुई फिल्म 'पानीपत' की तैयारी और पिछली फिल्मों के किस्से अर्जुन कपूर भास्कर से साझा कर रहे हैं।
पानीपत' में मैं जिस सदाशिवराव भाऊ का किरदार प्ले कर रहा हूं, उन्होंने हिंदुस्तान को उस वक्त एकीकृत करने की कोशिश की थी जब सभी राजा आपस में बंटे थे। सब अपनी अपनी रियासत को बचाने में लगे थे। तब सदाशिवराव का एक सूत्रीय लक्ष्य था कि हमारी विराट सेना इकट्ठे और एकजुट होकर विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ने का माद्दा दिखा सके। बाहरी आक्रांताओं से लड़ने वाली हिंदुस्तान की पहली आर्मी सदाशिव राव भाऊ ने ही खड़ी की थी। अफगान आक्रमणकारी अहमद शाह अब्दाली के अलावा फिल्म में नजीबुद्दौला का कैरेक्टर भी लोगों को काफी इंट्रेस्टिंग लग रहा है, जिसे आरजे मंत्रा ने प्ले किया है। फिल्म में इब्राहिम खान गर्दी का किरदार भी हैं जो हमारे लिए काम करते थे। शुजाऊदौला, जांकोजी राव, मल्हार राव होलकर जैसे शूरवीरों के किरदार भी लोगों को पसंद आएंगे।
फिल्म का पूरा स्केल ऐसा रखा गया है जो इसे वॉर एपिक जोनर की फिल्म बनाता है। इसे देखकर निकलने पर गर्व होगा और पता चलेगा कि उस दौरान अगर अफगानी आक्रमणकारियों को नहीं रोका गया होता तो हिंदुस्तान की तस्वीर आज बहुत बद्तर होती। यह फिल्म करना और आशुतोष जैसे डायरेक्टर के साथ काम करना गर्व की बात है। 'पानीपत' के दौरान उन्होंने मेरा हाथ पकड़ा और इस पूरी कहानी के सफर के दौरान वह मेरे साथ चलते रहे। मैंने कोशिश की कि सदाशिवराव भाऊ के किरदार को घोलकर पी सकूं। मैंने इस किरदार को थ्री डायमेंशन वाला बनाया, मतलब यह कि इसे सिर्फ योद्धा के तौर पर प्रस्तुत नहीं किया बल्कि इंसानी खूबी और खामियाें से भी इस कैरेक्टर को लैस किया। इसकी वजह से दर्शक इस कैरेक्टर से रिलेट कर पाएंगे।
मेरे भीतर भी एक प्रोड्यूसर और डायरेक्टर है लेकिन मैं हर फिल्म के साथ उसे अपने एक्टर अर्जुन कपूर पर हावी नहीं होने दे सकता। मैं सुझाव दे सकता हूं। किसी फिल्म की शुरुआत की बातचीत से ही तय हो जाता है कि डायरेक्टर किस स्वभाव का है? पता चल जाता है कि फिल्म किस दिशा में जा रही है। इससे पहले मेरी एक फिल्म 'इंडियाज मोस्ट वांटेड' का बहुत अच्छा कलेक्शन नहीं हुआ था। अगर उसके डायरेक्टर राजकुमार गुप्ता चाहते तो फिल्म को आइटमाइज कर सकते थे, लेकिन अगर उन्होंने कैरेक्टर के प्रति सच्चा रहने की कोशिश की तो मेरे लाख कहने पर भी वह फिल्म को आइटमाइज नहीं करते। मैं एक बार बोल सकता हूं या दो बार बोल सकता हूं, पर आखिरकार फिल्म तो डायरेक्टर ही बनाता है। हालांकि इन चीजों को लेकर उनके और मेरे बीच कुछ बातें हुईं कि फिल्म को थोड़ा हाईटेन करना है। कैरेक्टर को ऐसा करना है। फिल्म में थोड़ा सा रोमांस लाना है, लेकिन उनका कहना था कि उन्हें फिल्म को सिंपल ही रखना है। उस पर मैंने कहा कि चलो यही सही।